लेखनी कहानी -17-May-2023-दीर्घ कथा संग्रह
दूसरे युवक ने कहा - “ और पंडित जी , मैंने राह में एक पीपल के पेड़ से पत्ते तोड़कर ले जाती एक महिला को उसी समय देखा तो अनायास ही मेरे मुँह से यह पंक्ति निकली:-
लायो पीपर नारी । "
तीसरे युवक ने कहा - “ पंडित जी ! मैंने जामुन का एक पेड़ देखा जिस पर अनगिनत जामुन फले हुए थे तो मैंने कविता की तीसरी पंक्ति बनाई -
जामुन अन्त न पाइयो । ”
अब चौथे युवक की बारी थी । उसने गोनू झा से कहा " हम लोग थोड़ी देर और बढ़े तो देखा कि कुछ बच्चे खेलते - खेलते झगड़ने लगे तब मैंने कविता की अन्तिम पंक्ति जोड़ी:-
बरबस ठानो रारी । ”
और इस तरह उनकी कविता पूरी हुई:-
पक कर गुलर गिर गयो ,
लायो पीपर नारी।
जामुन अन्त न पाइयो ,
बरबस ठानो रारी।
गोनू समझ गए कि काना नाई ने उनका उपहास उड़ाने के लिए ही इन युवकों को उनके पास भेज दिया है । उन्होंने मन ही मन सोचा कि ऐसे तो ये युवक मूर्ख हैं किन्तु उनके मन में अपने माता -पिता को प्रसन्न करने की इच्छा है । इस इच्छा के कारण ही वे महाराज के दरबार में कविता सुनाने चले गए। दूसरी तरफ कानानाई उनसे जलता है तथा उनका मजाक उड़ाने के लिए इन युवकों को उनके पास जाने के लिए प्रेरित किया है । उन्होंने मन में ठान लिया कि वे इन युवकों को महाराज से पुरस्कार दिलाकर ही रहेंगे ।
वे अपने साथ उन युवकों को लेकर दरबार में पहुँचे। महाराज ने जब दरबार में युवकों को देखा तो वे आग- बबूला हो गए और डाँटते हुए बोले - “ अरे! तुम लोग फिर यहाँ आ गए ? " गोनू ने विनम्रतापूर्वक हस्तक्षेप किया - “ महाराज ! इन कवियों को मैं लेकर आया हूँ । आपके पास । ” जिस समय गोनू झा यह बात कह रहे थे, उस समय उनकी दृष्टि काना नाई पर टिकी हुई थी । गोनू ने मुस्कुराते हुए फिर कहा - “ महाराज ! मैं तो इन युवकों की चौपाई सुनकर विस्मित - सा रह गया । मुझे आश्चर्य है कि इतनी कम उम्र में इन युवकों ने चार पंक्तियों में सम्पूर्ण रामायण! की रचना कैसे कर ली ! "
अब महाराज के चौंकने की बारी थी । महाराज के मुँह से निकला - “ सम्पूर्ण रामायण? "
“ जी हाँ , महाराज ! सम्पूर्ण रामायण ! यदि आप अनुमति दें तो मैं इन युवकों की लघु किन्तु महानतम रचना आपको सुनवाऊँ ? " गोनू ने महाराज से कहा।
महाराज
ने अनुमति दे दी । पूरे दरबार में उत्सुकता पैदा हो चुकी थी । युवकों ने बारी बारी से अपनी - अपनी रचना दरबार में सुनाई:-
पक कर गुलर गिर गयो
लायो पीपर नारी
जामुन अन्त न पाइयो
बरबस ठानो रारी।
महाराज
की समझ में कुछ नहीं आया तब उन्होंने गोनू की ओर देखा। गोनू झा समझ गए कि महाराज उनसे कह रहे हैं कि क्या बकवास कविता है! गोनू झा ने मुखर स्वरों में कहा - “ महाराज ! ये पंक्तियाँ सामान्य नहीं हैं ... इनसे गूढ़तम बातें ध्वनित हो रही हैं । यह तो राम - रावण के युद्ध से लेकर उसके परिणाम तक को रेखांकित करनेवाली रचना है । ‘पक कर गूलर गिर गयो।' वस्तुतः रावण की पत्नी मंदोदरी का विलाप है - करुण रस का ऐसा वर्णन किसी अन्य पंक्ति में कहाँ ? इस पंक्ति में कवि कहता है कि सम्पूर्ण सोने की लंका, जो रावण के अभिमान का प्रतीक थी , पके गूलर की तरह धराशयी हो गई । ‘लायो पी - पर -नारी।' मंदोदरी के रूदन में यह ध्वनित होता है कि पी यानी मंदोदरी का पिया ... पति , अर्थात् रावण , पर -नारी अर्थात् राम की पत्नी सीता को ले आया जिसके कारण लंका का विनाश हुआ। जा - मन , अन्त न पाइयो में भगवान श्रीराम का यशोगान है कि हे मन ! राम तो भगवान हैं - अनंत हैं । उनके सामर्थ्य को भला कैसे जाना जा सकता है...? और महाराज ! कविता की अंतिम पंक्ति का अर्थ तो अब बिलकुल साफ हो गया कि मंदोदरी विलाप करते हुए कहती है कि जिस परमेश्वर राम के मन की शक्ति की थाह कोई नहीं ले सकता उससे उसके पति रावण ने बरबस दुश्मनी मोल ले ली जिसका नतीजा हुआ कि वह आज अपने समस्त ऐश्वर्य के साथ ध्वस्त हो गया । "
महाराज
उस कविता से तो नहीं, बल्कि गोनू द्वारा की गई विद्वतापूर्ण विवेचना से प्रभावित हुए। उन्होंने यह भी समझ लिया कि गोनू इन युवकों की मदद करना चाहते हैं । इसका अर्थ है कि उन्होंने इन युवकों में कोई अच्छी बात जरूर देखी है, अन्यथा वे इन्हें लेकर दरबार में नहीं आते। ऐसा विचार कर महाराज ने युवकों को इनाम दिया ।
इनाम पाकर चारों युवक प्रसन्न हुए और दरबार से विदा होते समय इन युवकों ने जब गोनू झा का चरण स्पर्श किया तब गोनू झा ने आशीष देने की शैली में कहा - “जाओ, इनाम में मिली धनराशि अपने माता -पिता को देकर प्रसन्न करो। अब घर जाकर कुछ काम की बातें सीखो। कविता से रोजी - रोटी नहीं मिलती। "
युवकों
के जाने के बाद गोनू झा ने काना नाई की तरफ भरपूर दृष्टि डाली और मुस्कुराते हुए अपने आसन पर विराजमान हो गए ।